रचना चोरों की शामत

कुदरत के रंग

कुदरत के रंग

Saturday 16 April 2016

साहित्य एवं साहित्यकार/ मेरा परिचय सिंधु केसरी के चेटी-चंड विशेषांक में


जिस तरह प्रकृति परिवर्तन अटल है, उसी तरह जीव-जीवन में उतार चढ़ाव भी निश्चित है। सुख-दुख, धूप-छाँव, लाभ-हानि, उत्थान-पतन आदि। हर इंसान को न्यूनाधिक इन समस्याओं से जूझना ही पड़ता है। लेकिन हम यदि यथार्थ को स्वीकार न करते हुए अपने हौसले ही खो बैठें तो जीना ही दूभर हो जाए। मानव जन्म किस्मत से ही मिलता है। इसे हर रूप में स्वीकार करके हमें कुदरत का आभार मानना चाहिए।

  मेरा जीवन भी अनेक उतार चढ़ावों के बीच गुज़रा है। हाई स्कूल तक  औपचारिक शिक्षा के बाद पारिवारिक जवाबदारियों का निर्वाह करते हुए उम्र के ४५ वर्ष सामान्य रूप से कट गए। फिर अचानक जीवन में अनेक विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गईं। लंबे समय तक शारीरिक अस्वस्थता, पति का असमय साथ छूटना आदि समस्याओं से जूझते हुए मृत्यु से साक्षात्कार करने के बाद जब पुनर्जन्म हुआ, तब जीवन का अंतिम अध्याय शुरू हो चुका था। शहर और घर बदलते रहने के कारण न मित्र बन पाए थे न ही बाहरी दुनिया से संपर्क, और अब  लंबी बीमारी से  शारीरिक कमज़ोरी के कारण कहीं आना जाना ही छूट गया। सुनने की क्षमता भी प्रभावित हो चुकी थी अतः टी वी से भी दूरी बन गई। समय बिताने के लिए कोई राह शेष न रही।  

 हिन्दी साहित्य से मेरा लगाव बचपन से ही था और अच्छा साहित्य पढ़ते रहने का क्रम भी कभी टूटा नहीं था। अतः इस आत्मकेंद्रण की स्थिति में मेरा मन अनायास लेखन की ओर मुड़ा। शयन कक्ष में सामने टेबल पर रखा हुआ बेटे का कंप्यूटर देख-देख कर सोचा क्यों न कुछ नई शुरुवात की जाए।

बेटे से सीखने के लिए कहा, उसने मेरे विचारों का स्वागत करते हुए कंप्यूटर का प्रयोग करना सिखाया। फिर धीरे धीरे अंतर्जाल का प्रयोग करना सीखा। लगन एकाग्रता, सब्र और मेहनत से लिखने की शुरुवात की। वेब पर साहित्य की  इतनी विस्तृत दुनिया देखकर मैं आश्चर्य चकित रह गई। फिर तो घटनाक्रम कुछ इस तेज़ी से बदलने लगा कि अकेलेपन का नाम निशान न रहा।
  
इस नई दुनिया में मेरा परिचय सर्वप्रथम पूर्णिमा वर्मन (संपादक, वेब पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति”) जी से हुआ, उन्होंने काव्य में मेरी रुचि देखकर अपने समूह से जोड़ा, जहाँ उनके मार्गदर्शन और अनेक विद्वानों के सान्निध्य में लेखन की शुरुवात हुई।  

 मेरा पहला गीत हिन्दी की मशालशीर्षक से इसी पत्रिका के हिन्दी  विशेषांक(सितंबर-२०११) में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुआ और मेरी कलम को देश विदेश में पहचान मिली। यह मेरे लिए अनमोल क्षण था और रचनात्मकता के क्षेत्र में मेरा प्रथम पुरस्कार। अब मुझमें आत्म विश्वास आ चुका था।

शीघ्र ही मैं छंद की हर विधा- गीत-नवगीत, ग़ज़ल, दोहे, कुण्डलिया आदि में आसानी से लिखने लगी।  मेरी प्रतिभा, योग्यता और लगन को देखकर पूर्णिमा जी ने मुझे अपनी पत्रिका के संपादक मण्डल में शामिल करके  सह संपादक के पद से सम्मानित किया। उनके लगातार उत्साह वर्धन से ही आज मैं पाठकों के दिलों में स्थान बना पाई हूँ। उनका ब्रह्म वाक्य- “प्रतिभा कभी उम्र या उपाधियों की मोहताज नहीं होती ही मेरा प्रेरणा स्रोत है।   
          
अब लिखना दिनचर्या का अंग बन चुका है। प्रवृत्ति अति संवेदनशील है और प्रकृति-प्रेम मेरी नस-नस में रचा बसा हुआ है, अतः रचनाएँ भी इन भावों से अछूती नहीं हैं। कलम थामने के बाद तन मन स्वतः ही स्वस्थ रहने लगा है। मुझे लगता है कि शायद मेरा पुनर्जन्म इसीलिए हुआ है कि जीवन का जो अध्याय अधूरा रह गया था उसे पूरा कर सकूँ।
मातृभाषा सिंधी होते हुए भी मेरा सम्पूर्ण लेखन हिन्दी में ही हुआ है, और आजीवन हिन्दी की सेवा ही मेरा लक्ष्य है।  

वर्षों के लेखन काल में मेरी प्रकाशित कृतियाँ-
नवगीत संग्रह-
१) नवगीत संग्रह *हौसलों के पंख* -२०१३
2) नवगीत संग्रह *खेतों ने ख़त लिखा*-२०१५  
३) गज़ल संग्रह- *मैं ग़ज़ल कहती रहूँगी*-२०१६
४)ई बुक *मूल जगत का, बेटियाँ*
साथ ही वेब और मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन होता रहता है।

संप्रति-
वर्तमान में १४ वर्षों से वेब पर प्रकाशित होने वाली पत्रिका/अभिव्यक्ति-अनुभूति(संपादक/पूर्णिमा वर्मन) के सह-संपादक पद पर कार्यरत हूँ।

पुरस्कार/सम्मान-
मेरे प्रथम नवगीत संग्रह 'हौसलों के पंख' पर पूर्णिमा वर्मन द्वारा 'अभिव्यक्ति विश्वम' का नवांकुर पुरस्कार

वर्तमान पता-
कल्पना रामानी
c/o-Ajay Ramani- Mo.07303425999
१६०१/६   हेक्स ब्लॉक्स, सेक्टर-१० 
खारघर, नवी मुंबई -४१०२१०
*मो-07498842072
ई मेल-kalpanasramani@gmail.com    
ब्लॉग-

एक ग़ज़ल


खुशबू से महकाओ मन, बागों की तरहा। 
रंगों से भर दो जीवन, फूलों की तरहा। 

कभी न बनकर बाँध, रोकना बहती धारा 
सतत प्रवाहित रहो, धार-नदियों की तरहा। 

कितना प्यार जगत में, देखो थोड़ा नमकर 
अकड़न, ऐंठन छोड़, फलित डालों की तरहा।   

ऋतुएँ रूठें, करो न ऐसी खल करतूतें
रौंद रहे क्यों भू को, यमदूतों की तरहा।

किया प्रदूषण अब तक अर्पित नीर-पवन को
बनो चमन मन! हरो दोष, पेड़ों की तरहा।  

अँधियारों को राह दिखाओ जुगनू बनकर
उजियारों से तम काटो तारों की तरहा।

बोल लबों से कभी न फूटें अंगारे बन
मित्र! चहकते रहो सदा चिड़ियों की तरहा।    

बात पुरानी कहने का अंदाज़ नया हो 
ज्यों महफिल तुमको गाए, गज़लों की तरहा। 

मनुष बनाकर तुम्हें ईश ने भू पर भेजा
कर्म कल्पनाफिर क्यों हों पशुओं की तरहा। 

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धन्यवाद सहित

-कल्पना रामानी

कथा-सम्मान

कथा-सम्मान
कहानी प्रधान पत्रिका कथाबिम्ब के इस अंक में प्रकाशित मेरी कहानी "कसाईखाना" को कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.चित्र पर क्लिक करके आप यह अंक पढ़ सकते हैं

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)

कथाबिम्ब का जनवरी-मार्च अंक(पुरस्कार का विवरण)
इस अंक में पृष्ठ ५६ पर कमलेश्वर कथा सम्मान २०१६(मेरी कहानी कसाईखाना) का विवरण दिया हुआ है. चित्र पर क्लिक कीजिये