नए साल की छूट है
मची माल में लूट है
एक खरीदो एक फ्री
थैले भर ले जाओ जी...
जब
शहरों के बाज़ार, माल दुकान आदि बिक्री केन्द्रों
पर छूट का हल्ला मचा हुआ हो, मनभावन, लोकलुभावन
सामग्री से समाचार पत्र अटे हुए हों, टीवी चेनल नारे लगा रहे हों तो
फिर महिलाओं में खरीदी की होड़ में दौड़ शुरू होना स्वाभाविक ही है।
लीना और
मीना शहर की एक मध्यमवर्गीय सोसाइटी के सिंगल बेडरूम-हाल के छोटे से फ्लैट में
रहती हैं। दोनों पक्की सहेलियाँ हैं। घर के कार्यों से फुर्सत पाकर घंटों मोबाइल
पर लगी रहती हैं। उनकी आपस में इतनी इस कारण भी पटती है कि जहाँ सोसायटी की अधिकतर
शादीशुदा युवतियाँ कोई प्राइवेट कंपनी में तो कोई सरकारी नौकरी करती हैं,
लीना और मीना का, सीमित आमदनी में गुजारा करते हुए
घर के कार्यों में अपना समय खपाने के बाद कुछ
समय किताबें तथा रुचिकर साहित्य पढ़ने में तथा कुछ पड़ोस मोहल्ले की खोज खबर साझा
करने के साथ बतरस का आनंद लेने में गुज़र जाता है।
समाचार
पत्र, पत्रिकाओं के विज्ञापनों पर चर्चा
तो चलती ही रहती है। क्या मज़ाल कि कपड़े, गहने,
चूड़ी,
चप्पल
से लेकर रूमाल बिंदी तक का कोई विज्ञापन इनकी नज़रों से चूक जाए।
बनाव-शृंगार
और नए कपड़ों का शौक तो हर महिला को होता है और यह स्वाभाविक भी है सो आज की चर्चा
इसी विषय पर ही थी। महिलाओं को जेब खर्च चाहे कितना भी कम मिलता हो लेकिन ‘बूँद-बूँद
से घट भरे’ वाली कहावत को वे भली भाँति
चरितार्थ करने में लगी रहती हैं फिर ऐसे मौके बार-बार नहीं आते,
उनको
इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि जो कहा जा रहा है उसमें कितनी सच्चाई है। बात की
तह तक जाने की फुर्सत ही किसको है और हो भी तो इस मामले में जानकर अंजान बनने में
जो सुख है, वो केवल महिलाएँ ही जानती हैं। वैसे
तो वे साल भर के हर त्यौहार पर छूट का लाभ उठाती ही हैं,
लेकिन जो आनंद पतियों से छिपकर खरीदने में मिलता है वो साथ में नहीं,
क्योंकि साथ रहने से लगाम पतियों के हाथ में होती है। पतियों के साथ खरीदा हुआ माल
एक नंबर में और अलग से खरीदा हुआ भूगत रहता है। यह विशेषता लगभग हर महिला में होती
है। फिर भला लीना या मीना का क्या दोष?
आज
३० दिसंबर है और शहर के प्रसिद्ध माल में वस्त्रों पर छूट का अंतिम दिन,
सो
आज की बातचीत में दोनों ने तय किया कि पतियों के दफ्तर जाने के बाद माल जाकर कुछ
माल समेटा जाए, इस शुभ अवसर पर यह शुभकर्म न किया
तो पूरा साल ही व्यर्थ जाएगा। घर के काम जल्दी-जल्दी समेटकर दोनों अपने अरमान पूरे
करने चल पड़ीं।
माल उनका चिर परिचित था। वैसे तो शहर में अनेक माल कुकुरमुत्ते जैसे
यहाँ-वहाँ उग आए थे लेकिन उनको एकमात्र इसी माल से ख़रीदारी करना पसंद है क्योंकि
यहाँ उनको अपने गाँव जैसा सुकून मिलता है। यहाँ सारी सूचनाएँ अंग्रेज़ी के साथ ही
हिन्दी में भी टंकित होती हैं और विदेशी परिधानों के साथ ही पारंपरिक भारतीय
परिधान- सलवार-सूट, लहँगा-चोली,
साड़ी आदि के स्टॉल पर उसी वेषभूषा में युवतियाँ तैनात रहती हैं। माल पहुँचकर वे हर
स्टाल पर देखती हुई घूमती रहीं। कपड़ों की वैरायटियाँ इतनी कि सोच सोच कर उनका
दिमाग ही सुन्न होने लगा। गरम कपड़ों पर भी विभिन्न ब्राण्डों की बहार थी। आखिर नया
साल आता भी तो घोर सर्द मौसम में है न! विक्रेताओं की चाँदी ही चाँदी और खरीदार भी
सस्ते? कपड़े खरीदकर निहाल!
मीना और
लीना तय ही नहीं कर पा रही थीं कि क्या खरीदें और क्या छोड़ें। दोनों पर ऐसा जुनून
सवार हो गया कि वे तब तक कपड़े खरीदती रहीं जब तक पर्स ने और रकम देने से इंकार न
कर दिया।
खरीदी से संतुष्ट होकर जैसे ही बिल चुकाने के लिए
काउंटर की ओर मुड़ीं कि अचानक उन्होने लता को
उस तरफ आते हुए देखा।
लता उनकी ही सोसायटी की नौकरी पेशा युवती थी। एक ही
सोसायटी के रहवासी कॉमन स्थल पर, जहाँ
भ्रमण-पथ, उद्यान,
लॉन, तरणताल और बच्चों के झूले आदि हैं वहाँ तो
मिलते ही हैं, क्लब हाउस में भी त्यौहारों पर
मुलाक़ात होती रहती है। इस तरह सभी रहवासी एक दूसरे से परिचित तो हो ही जाते हैं और
एक दूसरे को अनेक मौकों पर घर भी बुलाया जाता है। एक साथ खानपान और उपहारों का
लेन-देन भी चलता ही रहता है।
हमारे देश में कोई कहीं भी रहे लेकिन परम्पराओं से
परे कोई नहीं होता। यही एक भारतीयों की
विशेषता है जो लोगों को जोड़े रखती है।
आधुनिकता को अपनाना तो सबकी अपनी-अपनी समझ पर होता है। लीना और मीना का
ख़रीदारी का काम पूरा हो चुका था और उनको अब शीघ्र घर पहुँचकर रसोई का काम भी
पतियों के आने से पहले करना था तो वे अब वहाँ रुकने के मूड में बिलकुल नहीं थीं।
लता को देखकर उन्होंने कन्नी काटकर निकल जाने में ही अपनी भलाई समझी। अगर वो
इन्हें देख लेगी तो एक घंटा और बर्बाद हो जाएगा क्योंकि लता अकेली ही थी शायद ऑफिस
से छूटकर कुछ ख़रीदारी के लिहाज से सीधे यहीं आई होगी।
अतः दोनों उससे बचने की तरकीब सोचने लगीं। इधर उधर
देखने पर उन्हें एक रास्ता सूझ ही गया। वे
सामने ही दिख रहे बड़े दरवाजे से होकर खुली
छत वाले हिस्से में पहुँच गईं जहाँ लोग ख़रीदारी के बाद अपनी अपनी पसंद के व्यंजनों
का स्वाद ले रहे थे। इनको भोजन तो घर पहुँचकर पतियों के साथ ही करना था सो चाय का
आर्डर देकर बैठने के लिए ऐसी जगह चुनी जहाँ से लता को ठीक से देखा जा सकता था। लता
की नज़र शायद उनपर नहीं पड़ी थी, कुछ ही
देर में वो हर जगह नज़र फेरती हुई वहाँ से चली गई। दोनों ने चैन की साँस ली और बिल
चुकाने वापस वहीं आ गईं।
दोनों के
बैग गले तक भरे हुए थे, अब
उन्हें घर में जगह देने की बारी थी। एक
बेडरूम के घर की इकलौती अलमारी में भला कितना कुछ समेटा जा सकता है?
हालत
तो यह थी कि पट खुलते ही कपड़े कदमों में लोटने लगते थे, और
अगर कपड़ों को आज ही भूगत न किया तो पतिदेव नाराज़ होने के साथ ही नए साल का उपहार
भी हजम कर जाएँगे। वे क्या जानें कि हमने कितनी मेहनत से यह रकम एकत्रित की है।
बहुत सोच-विचार के बाद दोनों ने तय किया कि वे अपने बैग बदलकर घर ले जाएँ और
पतियों को मित्र का बैग बताकर उत्सव के बाद आराम से घर में व्यवस्थित कर लें। इस
तरह पूरी तरह संतुष्ट होकर दोनों अपने-अपने घर लौटीं।
शाम को जब मीना के पति विनय दफ्तर से लौटे तो कोने
में बैग देखते ही कहा-“आज तो
लगता है तगड़ी ख़रीदारी हुई है, ज़रा मैं
भी तो देखूँ ...”
“नहीं जी, मैं
इतनी खुशनसीब कहाँ हूँ, यह बैग
तो मेरी सहेली लीना का है, वो मुझे
मशविरे के लिए साथ ले गई थी, वापसी
में उसे एक मित्र के पास जाना था तो बैग मुझे सँभालने को कहा,
देखिये
न नए साल की छूट में कितने सुंदर सूट खरीदे हैं उसने। मुझे भी इसी तरह का सूट
चाहिए। आज छूट का अंतिम दिन है… आपने
मुझे एक ड्रेस दिलाने का वादा किया है, अब तक वो
भी पूरा नहीं किया। अगर आज नहीं दिलाया तो फिर उसी कीमत में एक ही सूट खरीदना
पड़ेगा। प्लीज़... मेरे पास कोई नया सूट
नहीं है…”
“ठीक है डियर,
तुम्हें
समय पर उपहार मिल जाएगा, ज़रा अदरक
वाली चाय तो पिलाओ, ठंड से रूह काँप रही है”
शाम को जैसे-तैसे समय निकालकर विनय ने दफ्तर से
लौटते हुए एक ड्रेस पत्नी के लिए खरीदने का मन बनाया और माल पहुँच गया। वहाँ लीना
के पति सुशील भी मिल गए। मित्रता इतनी प्रगाढ़ तो नहीं थी फिर भी कभी-कभार पत्नियों
की गहरी दोस्ती के कारण एक दूसरे के यहाँ आना-जाना हो ही जाता था। घूम-फिरकर दोनों
एक ही स्टाल पर मिल गए, शायद
सुशील भी पत्नी के लिए ड्रेस खरीदने के उद्देश्य से आया था। विनय ने पूछ ही तो
लिया
“किसके लिए ख़रीदारी की जा रही है
सुशील?”
“क्या बताऊँ यार,
कल
के उत्सव के लिए हमारी श्रीमती जी को मीना भाभी जैसा ही सूट चाहिए,
उसी
की तलाश में हूँ। बहुत सुंदर ड्रेस खरीदे हैं भाभीजी ने...”
“मीना ने कब खरीदे?
मुझे
तो पता ही नहीं...”
“अरे! कल ही इसी माल से छूट
में...लीना को साथ ले गई थीं, वापसी
में उनको मित्र के यहाँ जाना था तो बैग लीना के पास ही रह गया”।
विनय हैरान होकर बोला-
“यही तो मीना ने भी मुझसे
कहा...लीना भाभीजी का कपड़ों का बैग मेरे घर पर ही है...”
दोनों को मामला समझने में देर न लगी,
पत्नियों
की चालाकी भाँपकर उन्हें मात देने की योजना बनाकर दोनों खाली हाथ वापस लौट गए।
पति को आज भी खाली हाथ आया देख मीना की भौंहें तन
गईं-
“हर दिन झाँसा देने में तुम्हें
शर्म नहीं आती? अगर मेरे लिए इतना भी खर्च नहीं
कर सकते तो मैं भी कल क्लब नहीं जाने वाली...”
“अरे! अभी कल का दिन बाकी है डियर,
सचमुच
आज बहुत थक गया हूँ, छूट की अवधि कुछ दिन बढ़ गई
है, यह देखो...उसने समाचार पत्र आगे कर दिया”।
मीना निरुत्तर होकर चाय बनाने चली गई। सोचा,
कल
तक और सब्र कर लेगी। सुबह दफ्तर जाते हुए पति को एक बार फिर से याद दिलाया कि उसे
ऑफिस से सीधे माल जाकर ड्रेस खरीदनी है। विनय मुस्कुराकर चला गया। शाम को कुछ देर
से ही घर लौटा। आते ही बैग मीना के हाथ में देकर जल्दी से तैयार होने को कहा। मीना
ने बेसब्री से बैग लपक लिया। खोलकर देखते ही वो आश्चर्य में पड़ गई। यह सूट उसके
खरीदे हुए एक सूट जैसा ही था, उसे
अच्छी तरह याद था, रंग डिज़ाइन सब,
बल्कि
साथ में फ्री लिया हुआ सूट भी वैसा ही...सोचने लगी-विनय की पसंद उसकी पसंद से
कितनी मिलती है, अब ये अतिरिक्त पीस लीना से ही से
अदल-बदल कर लेगी। सोचकर वो खुशी-खुशी तैयार होकर पति के साथ चल पड़ी।
क्लब के मुख्य द्वार पर ही उसे लीना अपने पति के
साथ मिल गई। उसे देखकर मीना को आश्चर्य का एक और झटका लगा। उसने भी अपने ही खरीदे
हुए कपड़ों जैसा सूट पहन रखा था, “यह कैसे
हो सकता है?” सोचती हुई वो लीना की ओर बढ़ी,
इधर
विनय और सुशील बातें करते हुए आगे निकल गए।
“लीना...यह कैसे हो सकता है कि हम
दोनों के ही पति हमारी खरीदी हुई ड्रेस जैसी ही ड्रेस ले आए?”
“हाँ मीना। मुझे भी आश्चर्य हो रहा है,
और
तो और साथ में फ्री वाली ड्रेस भी वैसी”।
जब दोनों ने घर में हुई बातचीत एक दूसरे को बताई तो
उन्हें सब समझ में आ गया कि चोरी पकड़ी गई है, उनकी
जूती उन्हीं के सिर पर पड़ चुकी थी।
सामने नज़र पड़ी तो विनय और सुशील उनको ही देखकर
मुस्कुरा रहे थे। खिसियानी सी दोनों उस तरफ बढ़ गईं।
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